Thursday, August 24, 2023

Ek akela ped by Chanpreet Singh| Book review



पुस्तक समीक्षा:
पुस्तक में मनोरंजक कविताएँ शामिल हैं जो विभिन्न मुद्दों पर गहरा प्रभाव डालती हैं। क्यूकिं किताब की शुरुआत एक अकेला पेड़ कविता से होती है जहाँ कवि एक पेड़ की बेबसी का वर्णन करता है। हमें जीवन देने वाले पेड़ काटे जा रहे हैं। पेड़ों को जंगल से लेकर उन रास्तों पर अकेले छोड़ दिया जाता है जहां हम इंसानों को हरियाली लगती है? लेकिन क्या हम उन्हें उनके घरों से अलग नहीं कर रहे हैं? हम अपनी आने वाली पीढ़ी को वास्तव में क्या प्रदान करने का प्रयास कर रहे हैं?

यह पुस्तक थोड़े समय के लिए पढ़ी गई है लेकिन प्रत्येक कविता में गहराई है जो शब्दों से कहीं अधिक कहती है। यह हमारे कृत्यों के पीछे की क्रूरता को मजाकिया शब्दों के साथ इंगित करता है जो आपको आज की वास्तविकता के बारे में एक बार फिर से विचार करने के लिए मजबूर करता है।

कुछ काव्यात्मक छंद जिन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया:
🍎 "लिखना नहीं कला न यह विज्ञान, यह तो मानवता को प्रभु का वरदान, कैसे न अपनाऊँ यह आज़ादी स्वराज, तभी तो लिखने से न आऊँ मैं बाज़।"
बहुत सच्चा लेखन न तो कला है और न ही विज्ञान। लेकिन यह कवि के हृदय या भावनाओं को कुशल ढंग से प्रवाहित करता है। केवल कुछ ही व्यक्ति जिन पर ईश्वर का आशीर्वाद होता है, उनमें यह गुण होता है कि वे अपनी लेखनी से कई लोगों के दिलों को छू लेते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता शायद ही कभी मिलती है, इसलिए कवि लिखना नहीं छोड़ सकता।

🍎"जो देखते नहीं पीछे क्या बढ़ते वह आगे? क्या भटकते नहीं वह जो अतीत से भागे? पुरानी यादों पर ही यादें बनाएगा, अतीत के भीतर ही भविष्य पाएगा।"
जब तक कोई अपने अतीत से मार्गदर्शन नहीं मांगता तब तक उसे सफलता नहीं मिल सकती। स्वयं का आत्मनिरीक्षण अनिवार्य है। कोई भी व्यक्ति भविष्य की नींव किसी ऐसे आधार पर रख सकता है जो हमारा अतीत है।

कवि ने बड़ी ही बारीकी से शब्दों को मनमोहक और ज्ञानवर्धक ढंग से पिरोया है। उनकी स्पष्ट शैली और कविताओं का सुंदर चित्रण इसकी सुंदरता को बढ़ाता है।

कुल मिलाकर, यह पुस्तक कविताओं का एक दिल छू लेने वाला संग्रह है जो पाठकों पर लंबे समय तक प्रभाव छोड़ती है। पढ़ने लायक, अवश्य लें!

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